भूखे मरने की आ गई थी नौबत, अपनी जमीन पर मिला सुकून
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बस्ती महाराष्ट्र, सूरत अमृतसर से लेकर कुन्नूर तक से एक-एक कर ट्रेन उत्तर प्रदेश पहुंच रही है। जहां से बसों के सहारे मजदूर जिले में पहुंच रहे हैं। अभी तक ट्रेनों से प्रदेश में लगभग सात सौ मजदूर आ चुके हैं। आगे भी उनके आने का सिलसिला जारी है। इसके अलावा मई माह में करीब डेढ़ हजार प्रवासी मजदूर, पैदल, ट्रक, बस, बाइक व साइकिल से जिले में पहुंच गए।
महाराष्ट्र से आए रमेश यादव निवासी चिरैयाडांड गौर ने बताया कि गोयण्डी में रहने के दौरान कोई पूछने वाला नहीं था। हर कोई गैर मानकर व्यवहार कर रहा था। अधिकारी से लेकर सबका प्रयास था कि यहां से भाग जाओ। यहां पर न तो जांच करा सकता हूं और न इलाज करा पाऊंगा। चाहे जैसे हो वापस चले जाइए। मैंने पूरी शिद्दत से चप्पल बनाने की फैक्ट्री में काम किया। रुपया कमा कर परिवार भी चला रहा था। लेकिन अब उपेक्षा बर्दास्त नहीं हुई तो पैदल ही घर के लिए चल दिया। रास्ते में ट्रक का भी सहारा मिला और अपने घर पहुंच गया।
सूरत के कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले नित्यानंद निवासी बेलौली कलवारी ने बताया कि धनी शहरों में शुमार होने वाले सूरत में हम मजदूर बेजार हो गए। लॉकडाउन के दौरान भोजन के लाले पड़ गए। पांच किलो चावल में चालीस लोगों को खाने के लिए दिया जाता था। ऐसे में वापस अपनी जमीन पर आकर शांति मिली है। अब यहीं पर कोई न कोई काम करके पेट पालेंगे। बाहर नहीं जाएंगे। खेतीबाड़ी पर जोर दिया जाएगा।
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