1930 की महामंदी में कैसा था भारतीय इकॉनमी का हाल?



  • आवाम ए अजीज हिंदी साप्ताहिक

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  • IMF ने वित्त वर्ष 2021 यानी मौजूदा वर्ष के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान और घटाकर 1.9 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले जनवरी में उसने अनुमान लगाया था कि भारत की ग्रोथ रेट 5.8 प्रतिशत रह सकती है। IMF ने चेतावनी दी कि 1930 की 'महामंदी के बाद की इस सबसे भीषण मंदी' से मचने वाली आर्थिक तबाही 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से हुए नुकसान से कहीं ज्यादा तकलीफदेह हो सकती है। उस मंदी ने पूरी दुनिया पर असर डाला था, जिससे उबरने में करीब एक का दशक का वक्त लग गया था।



अमेरिकी शेयर बाजार के ढहने से शुरू हुई उस महामंदी ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। अमेरिका और यूरोपीय देशों पर उसका बहुत प्रभाव पड़ा, हालांकि एशियाई देशों पर उसका कम असर देखने को मिला। पर भारत पर क्या असर पड़ा? आइए जानें कि 1930 की महामंदी के बाद क्या थी भारतीय इकॉनमी की हालत। पहले समझें कि क्या होती है मंदी।

क्या होती है मंदी?


मंदी उस आर्थिक स्थिति को कहते हैं, जहां लोगों की क्रयशक्ति कम हो जाती है या उत्पादन में काफी कमी आ जाती है। यानी ऐसी स्थिति जिसमें लोगों की खरीदने की कपैसिटी खत्म हो जाती है। सामान बिकता नहीं क्योंकि मांग नहीं आती। जब मांग नहीं आती तो फैक्ट्रियां आदि बेद होने लगती हैं और लोग बेरोजगार होने लगते हैं। अगर किसी देश की विकास दर में लगातार 3 महीने तक गिरावट दर्ज हो तो इसे मंदी के लक्षण के रूप में देखा जाता है।


1930 की महामंदी का भारत पर पड़ा था असर?


1929 से शुरू हुई महामंदी के वक्त भारत में ब्रिटिश राज था। पूरी दुनिया को महामंदी ने अपनी चपेट में लिया था। भारत के व्यापार पर इसका असर तुरंत देखने को मिला। इतिहासकारों का कहना है कि महामंदी ने भारत के औद्योगिक विकास की रफ्तार को बहुत धीमा कर दिया था। कई स्कॉलर्स का कहना था कि भारत में उत्पादन पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला था। लेकिन जूट उद्योग पर काफी असर पड़ा था। जूट की वैश्विक मांग घटने से कीमतें घट गई थीं। वैश्विक बाजार में जब कीमतें गिरने लगीं तो यहां भी दाम घटे और आयात-निर्यात घटकर करीब आधा रह गया।

 


वैश्विक व्यापार आधा रह गया


महामंदी काल के दौरान भारत के वैश्विक व्यापार में काफी कमी दर्ज की गई। 1929 से 1932 के दौरान आयात में जहां 47% की कमी दर्ज हुई वहीं निर्यात 49 फीसदी घट गया। 1928–29 से 1933–34 समुद्र के जरिए होने वाला एक्सपोर्ट 55.75% घटकर 1.25 अरब का रह गया, जबकि इंपोर्ट 55.51% कम होकर 2.02 अरब रुपये पर सिमट गया।


सबसे ज्यादा नुकसान किसे हुआ था?


1930 की महामंदी का भारत में सबसे ज्यादा असर देखने को मिला किसानों और काश्तकारों पर। ऐसे काश्तकार जो वैश्विक बाजार के लिए उत्पादन करते थे, वे बुरी तरह से प्रभावित हुए। जिन काश्तकारों ने कर्ज लिए थे, उत्पादन का सही मोल न मिलने के कारण वे और कर्ज में डूबते चले गए। रेलवे और कृषि क्षेत्र पर उस महामंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा। चूंकि आयात और निर्यात में काफी कमी आई, सामान के ट्रांसपोर्टेशन से होने वाली रेलवे की कमाई भी काफी घट गई।

सोने का एक्सपोर्ट


महामंदी के सालों के दौरान ही भारत ने कीमती धातु यानी सोने का एक्सपोर्ट करना शुरू किया था। इसकी शरुआत से ब्रिटेन को तो अपनी आर्थिक दशा सुधारने में मदद मिली लेकिन भारत के किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। किसान जमीन बचाने के लिए सोने-चांदी के जेवर बेच रहे थे । मुंबई बंदरगाह पर रोजाना 1600 औंस सोना पहुंचता, जिसे ब्रिटेन भेजा जाता। ऐसा करने से भारत के सोने-चांदी ने ब्रिटेन की इकॉनमी तो काफी हद तक मंदी से उबारने का काम किया, लेकिन यहां की हालत पतली होती चली गई।

शहरी लोगों पर नहीं पड़ा खास असर


1930 की महामंदी भारतीय शहरियों के लिए ज्यादा पीड़ा वाली नहीं रही। दाम घट रहे थे लेकिन शहरों में रहने वाले तय आय वाले लोगों पर असर नहीं पड़ा। यानी किराया वसूलने वाले जमींदार और सैलरीड लोगों पर इसका असर नहीं पड़ा।


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